Monday 13 January 2014

Indian banking system (भारतीय बैंकिंग व्यवस्था)

Dear Friends,
In this post i ll share Indian banking system (भारतीय बैंकिंग व्यवस्था) in Hindi. So enjoy reading in Hindi Language. 
भारतीय बैंकिंग व्यवस्था
भारत में संस्थागत बैंकिंग की स्थाई शुरूआत 1806 ई. मे हुई थी। निजी अंशधारित तीन पे्रसीडेंसी बैंकों की स्थापना की गई, जो इस प्रकार हैं-सन 1806 में बैंकआफ बंगाल, सन 1840 में बैंक आफ बांबे तथा सन 1943 में बैंक आफ मद्रास।
भारत सरकार ने सन 1860 में एक संयुक्त पूंजी कंपनी अधिनियम पारित किया जिसके बाद भारत में अनेक संयुक्त पूंजी बैंक स्थापित हो गए। इनमें से प्रमुख बैंक थे-इलाहाबाद बैंक(1865), एलांस बैंक आफ शिमला(1881), अवध कामर्शियल बैंक (1881), पंजाब नेशनल बैंक (1894) और पीपुल्स बैंक आफ इंडिया(1901)।
संयुक्त पूंजी पर आधारित भारतीयों द्वारा संचालित प्रथम बैंक अवध कामर्शियल बैंक था, जिसकी स्थापना 1881 में हुई।
अन्य वाणिज्यिक बैंक-
1. 19 जुलाई 1969 को 14 व्यावसायिक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 50 करोड़ रूपए से अधिक थी।
2. 15 अप्रैल 1980 को 6 अन्य वाणिज्यक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 200 करोड़ रूपए से अधिक थी।
3. 4 सितंबर 1980 को न्यू बैंक आफ इंडिया का पंजाब बैंक में विलय कर दिया गया।
वर्तमान में कुल व्यावसायिक बैंकों की संख्या 27 है जिनमें राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं और 8 (SBI और समूह) आंशिक रूप से राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
1. भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की शुरूआत 1975 में हुई।
2. वर्तमान में भारत में क्षेत्रीय बैंकों की संख्या 196 है।
3. केलकर समिति की संस्तुतियों के आधार पर 1987 के उपरांत किसी नए क्षेत्रीय बैंक की स्थापना नहीं की गई।
4. सिक्किम और गोवा में क्षेत्रीय बैंक नहीं हैं।
नाबार्ड- इसकी स्थापना 1982 में हुई। यह वर्तमान में भारत में कृषि एंव ग्रामीण क्षेत्र के विकास से संबंधित शीर्ष वित्तीय संस्था है। यह प्रत्यक्ष ऋण आवंटित नहीं करता है। पहले नावार्ड  का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा संचालित होता था। 1995 में नाबार्ड के अंदर ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के दृष्टिकोण से एक प्रकोष्ठ की स्थापना की गई, जिसका नाम रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड रखा गया। इस निधि का नाम बदलकर वर्तमान में जय प्रकाश नरायण निधि कर दिया गया।
बैंकिंग सुधार- भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टिïकोण से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई। जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति की द्वितीय में स्थापना 1998 में हुई, जिसकी संस्तुतियों को अभी लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।

गोइपोरिया समिति- बैंकों में ग्राहक सुविधा सुधारने के लिए 1990 में एम.एन. गोइपोरिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ जिसने 1991 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति के सुझाओं पर ध्यान देते हुए बैंकिंग लोकपाल योजना की शुरूआत 15 जून 1995 में की गई।
बैंकिंग लोकपाल योजना- भारतीय रिजर्व बैंक ने 15 जून 1995 से देश में इस योजना को शुरू किया। जिसमें बैंकों के ग्राहकों की शिकायतों का समाधान करने के लिए ग्राहक प्रहरी नियुक्त करने की व्यवस्था है। अब तक 15 अलग-अलग क्षेत्रों के लिए नियुक्त की जा चुकी है। इस योजना में सभी अनुसूचित बैंक और व्यावसायिक बैंक सम्मिलित हैं, लेकिन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है।
वर्मा समिति- कमजोर बैंकों की पुर्नसंरचना को ध्यान में रखते हुए 1998 में एम.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1999 में प्रस्तुत की। समिति ने यूको बैंक, इंडियन बैंक और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को कमजोर घोषित किया और पुन:पूंजीकरण की सिफारिश की।



ExamsDear Friends,
In This post I ll share  Economy: Glossary (अर्थव्यवस्था : शब्दावली) In Hindi Language. Hope fully it ll be helpful for Hindi-speaking candidates. we ll share more hindi articles time to time. So Now Enjoy this Reading. :)
अर्थव्यवस्था : शब्दावली
सकल घरेलू उत्पाद- एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं का अंतिम मौद्रिक मुल्य उसका सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
1. जीडीपी में होने वाला वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन ही किसी अर्थव्यवस्था की वृद्घि दर (Growth Rate) है।
2. यह किसी अर्थव्यवस्था की आंतरिक शक्ति को दर्शाता है।
3. यह अर्थव्यवस्था की उत्पादकता की मात्रा का अनुमान देता है-गुणात्मकता के तत्व को यह दर्शा पाता है।
4. दस अवधारण का प्रयोग तुलनात्मक अर्थशास्त्र में आर्थिक अध्ययनों के लिए किया जाता है।
शुद्घ घरेलू उत्पाद- शुद्घ घरेलू उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था का वह जीडीपी है, जिसमें से एक वर्ष के घिसावटïïï-टूट और फूट को बाद करके प्राप्त किया जाता है। जिसका कारण उनका घिसना या टूटना फूटना होता है। यह एक तरह से शुद्घ जीडीपी है।
सकल राष्टरीय उत्पाद- किसी अर्थव्यवस्था द्वारा एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एंव सेवाओं के अंतिम मौद्रिक मूल्य में जब उस वर्ष के उसके विदेशों से आय को जोडते हैं ,जो आय का आकलन होता है, उसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
निबल राष्टरीय उत्पाद- किसी अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित एक वर्ष के सभी वस्तुओं के अंतिम मौद्रिक मूल्य में विदेशों से आय को जोड़कर और घिसावट घटाकर करके जो आय की राशि बचती है, उसे शुद्घ राष्टरीय उत्पाद कहा जाता है।
कर और राष्टरीय कर- किसी देश के उत्पादनकर्ताओं में सरकार भी एक घटक है, जो प्रत्यक्ष उत्पादन (सरकारी कंपनियों द्वारा) के अतिरिक्त करों से भी आय अर्जित करती है। इन करों की राष्टरीय आय में गणना की विधि इस प्रकार है-
प्रत्यक्ष कर- प्रत्यक्ष कर (आय कर, संगठन कर आदि) कर दाता अपनी आय के एक हिस्से से अदा करता है, जिस कारण वह राष्टरीय आय में स्वयं जुड़ा होता है।

अप्रत्यक्ष कर- अप्रत्यक्ष कर करों (उत्पादन कर, मूल्य वर्धित कर बिक्री कर आदि)का भुगतान करदाता अपनी आय से करता है लेकिन अगर सरकार इसे अपनी राष्टरीय आय में पुन: जोड़े तो यह पुनरावृत्ति हो जाएगी। अत: राष्टरीय आय (साधन लागत) में से अप्रत्यक्ष करों को गणना घटा दिया जाता है।
मुद्रास्फीती- महंगाई आम आदमी को सबसे प्रभावित करने वाली सबसे विदित आर्थिक अवधारणा है। भारत में यह एक काफी संवेदनशील मुद्दा रहा है।

परिभाषा- मूल्य स्तरों में होने वाला सतत वृद्घि मुद्रास्फीति है। आम बोल-चाल की भाषा में मुद्रास्फीति, मंहगाई है। लेकिन सिद्घांतत : मूल्यों का गिरना भी मुद्रास्फीति है।
आवासीय मूल्य सूचकांक- भवन निर्माण उद्योग में बाजार संबंधी पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा आवासीय मूल्य सूचकांक के निर्माण पर कार्य किया जा रहा था। 9 जुलाई 2007 को सरकार द्वारा इस प्रकार के एक सूचकांक की घोषणा की गई। एन.एच. बी. रेजीडेक्स नामक सूचकांक का विकास देश के आवासीय ऋण नियामक राष्टï्रीय आवास बैंक द्वारा किया गया है। अभी इसे पायलट स्वरूप देश के पांच शहरों के लिए जारी किया गया है- बेंगलुरू, भोपाल, दिल्ली, कोलकत्ता और मुम्बई। इसके द्वारा पांचों शहरों का पांच वर्षों (2000-05) के स्थानीय स्तर के सूचकांकों का निरूपण किया जाता है।
ट्रेजरी बिल- वर्ष 1986 में प्रारंभ किए गए इस संघटक का उपयोग सरकार करती है। इसमें आज 91 और 182 दिवसीय ञ्जक्चह्य का संचयन है (14 और 364 दिवसीय ञ्जक्चह्य को मई 2001 में निरस्त कर दिया गया)।
कॉल मुद्रा बाजार- वर्ष 1992 से शुरू हुआ यह बाजार अंतर-बैंक संघटक है।

जमा प्रमाण पत्र- वर्ष 1989 में प्रारंभ किया गया मुद्रा बाजार का यह संगठन बैंकों के लिए है।

वाणिज्यिक बिल-1990 में संगठित इस संगठक का उपयोग संगठित क्षेत्र के द्वारा किया जाता है।
वाणिज्यिक पेपर- वर्ष 1990 में संगठित इस संगठन का उपयोग गैर बैंकिंग वित्त कंपनियों एंव अखिल भारती वित्तीय संस्थानों के द्वारा ‘प्रोमिसरी नोट्सÓ के रूप में किया जाता है।

रिपो-रेडी फारवर्ड लेन देन- वर्ष 1993 में संगठित इस संगठन में उपरोक्त सभी वर्गों को उपयोग की अनुमति है। व्यक्तिगत स्तर पर उपयोग के लिए ऐसा कोई मुद्रा बाजार का संघटन विकसित नहीं किया गया है। वैसे सरकारी और निजी बैंकों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाला क्रेडिट कार्ड इस श्रेणी में आता है। क्रेडिट कार्ड वास्तव में मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार दोनों ही का किसी व्यक्ति के स्तर का एक संगठन है।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान-
1. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम
2. भारतीय औद्योगिक साख एंव निवेश निगम
3.भारतीय औद्योगिक विकास बैंक
4. भारतीय लद्यु औद्योगिक विकास बैंक
5.भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक
भारत में तीन निवेश संस्थान प्रमुख हैं-
1. भारतीय जीवन बीमा निगम(रुढ्ढष्ट)1956
2. भारतीय साधारण बीमा निगम(त्रढ्ढष्ट)1971
3. भारतीय यूनिट ट्रस्ट(ञ्जढ्ढ)1964
राष्टरीय शेयर बाजार- मुंबई स्टाक एक्सचेंज भारत का सबसे पुराना स्टाक एक्सचेंज है। राष्टरीय एक्सचेंज का मुख्यालय मुंबई के वर्ली में है। मुंबई स्टाक एक्सचेंज के 30 अत्यधिक संवेदनशील शेयरों के मूल्यसूचकांक को संवेदी सूचकांक  (SENSEX Sensitive Index) कहते हैं। इस बाजार में 27 मई 1994 को दो नए शेयर मूल्य सूचकांक चालू किए गए बीएससी-200 और डालेक्स। बीएससी 200 इसमें 85 विशिष्टï ए श्रेणी और 115 अविशिष्ट बी श्रेणी के कुल 200 प्रमुख कंपनियों के शेयरों को शामिल किया गया है, जिसमें 21 सार्वजनिक उपक्रमों के शेयर भी शमिल हैं।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)- पूंजी बाजार में निवेश को संरक्षण प्रदान करने तथा निवेशों में विश्वास की भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से 1988 स्श्वक्चढ्ढ में की स्थापना की गई और 1992 में एक अधिनियम द्वारा इस संस्था को वैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया। इसका मुख्यालय मुंबई में है और क्षेत्रीय कार्यालय कोलकत्ता दिल्ली और चेन्नै में है।
प्रत्यक्ष कर प्रणाली- केंद्र सरकार के बजट में मुख्य प्रत्यक्ष कर आय कर (इन्कम टैक्स) और निगम कर (कॉरपोरेट कर) है। आय कर का आधार जहां वार्षिक व्यक्तिगत आय है, वहीं निगम कर का आधार निगमों का वार्षिक लाभ है।
अप्रत्यक्ष कर प्रणाली- अप्रत्यक्ष करों के संबंध में महत्वपूर्ण समस्या यह है कि इन करों को किस आधार पर अर्थात किस प्रणाली से आरोपित किया जाय।

मूल्य वृद्घित कर (वैट)- किसी भी वस्तु अथवा सेवा के उत्पादन में वितरण के प्रत्येक स्तर पर वस्तुओं एंव सेवाओं के मूल्य में होने वाली वृद्घि पर यदि कर लगाया जाता है तो यह प्रणाली मूल्य वृद्र्घित कर प्रणाली कहा जाता है।
प्लास्टिक मनी- प्लास्टिक मनी से तात्पर्य विभिन्न बैंकों, वित्तीय संस्थानों द्वारा जारी की जाने वाली क्रेडिट कार्ड से है।

नेट बैकिंग- इंटरनेट द्वारा घर बैठे बैंकिंग कार्यों का संचालन नेट बैंकिग कहलाता है।
लीड बैंक योजना- 1969 में इस योजना से देश के प्रत्येक जिले में बैंक शाखाओं की संख्या के आधार पर एक बैंक को लीड बैंक घोषित किया जाता है।
चेक- चेक एक प्रकार का बिल ऑफ एक्सचेंज होती है। जो एक निर्दिष्ट बैंक के ऊपर आहरित होती है।

विनमय पत्र- यह एक ऐसा लिखित विपत्र है जो किसी व्यक्ति को यह शर्त रहित आज्ञा देता है कि वह एक निश्चित धन राशि किसी व्यक्ति विशेष या उसके आदेशानुसार किसी व्यक्ति को भुगतान कर दे।
डी-मैट अकाउंट- यह एक प्रकार का बैंक खाता है जहां रुपयों की जगह शेयर व बॉन्ड रखे जाते हैं।
हालमार्क - स्वर्णाभूषण  गुणवत्ता निर्धारण करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो ने हालमार्क योजना 2000 में प्रारम्भ की।
एम्बार्गो- यह एक व्यापार प्रतिबंध है जिसके अंर्तगत एक या कई राष्ट्र मिलकर दूसरें देशों के साथ अपना पूरा व्यापार बंद कर देते हैं।
हवाला- हवाला, विदेशी विनमय चैनलों के समनांतर एक प्रणाली है। जिसमें भुगतान घरेलू मुद्रा में व इसके बदले में विदेशों में विदेशी मुद्रा में आपूर्ति की जाती है।

स्वीट शेयर- इ वे शेयर जो कंपनी के कर्मचारी किसी को रियायती दरों में उपलब्ध कराते हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र-विकासशील देशों में लोग छोटे मोटे,श्रमप्रधान व्यवसायों में लगे होते हैं। जो सरकारी आंकड़ों में सूचीबद्ध भी नहीं होते। अनौपचारिक  या असंगठित क्षेत्र कहलाता है।
क्लोजिंग स्टॉक- वह माल जो व्यापार वर्ष के अंत में प्रयोग होने से बच जाता है।

मूर्त संपत्तियां- वे संपत्तियां जो अचल या स्थाई होती है। जैसे मकान,भूमि व बाकी भौतिक सम्पत्तियां।
गिल्ड एज बाजार- इसके अंर्तगत क्रय विक्रय की जाने वाली प्रतिभूतियों को सरकारी समर्थन मिलता है। भारत में प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय का काम आरबीआई के माध्यम से होता है।

काला धन- जिस धन पर प्रत्यक्ष कर नहीं दिया जाता उसे काला धन कहते हैं।
ब्रिज लोन- जब कोइ कंपनी अपनी पूंजी के विस्तार के लिए अपने नए शेयर व डिबेंचर्स जारी करता है। कंपनी को इस दौरान पूंजी जुटाने में काफी समय लगता है। इस दौरान धन की कमी पूरी करने के लिए कंपनी बैंको से अल्पअवधि ऋण लेती हैं जिन्हे ब्रिज लोन कहते हैं।
हार्ड करेंसी- अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक रहती है। हार्ड करेंसी कहलाती है। जैसे डॉलर,यूरो,पौंड आदि।

सॉफ्ट लोन- जिस ऋण को कम ब्याज व लंबी भुगतान अवधि जैसी आसान शर्तों पर उपलब्ध कराया जाता है,सॉफ्ट लोन कहलाता है।
संपत्ति कर- किसी व्यक्ति द्वारा संचित संपत्ति के आधार पर लगने वाले कर को संपत्ति कर कहते हैं।

बौद्धिक संपदा- मानव की वह संपत्ति जो उसके स्वयं के बौद्धिक क्षमताओं द्वारा तैयार की जाती है। जैसे नवीन सिद्धांत, नई खोजें,साहित्य, कलात्मक रचनाएं।
ब्लू चिप- वे कंपनियां जिनकी बाजार में अच्छी साख होती है। उनके शेयर खरीदने पर नुकसान संभावनाएं कम से कम हों। ब्लू चिप कंपनी कहलाती हैं।

ग्रेशम का नियम- ‘यदि किसी समय बाजार में अच्छी व बुरी मुद्राएं दोनों एक साथ चल रहीं होंं तो बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।’

गोल्ड - हर देश का स्वर्ण मान अलग अलग होता है। प्रत्येक देश चल रही कुल मुद्रा की तुलना में एक तय स्वर्ण भंडार रखता है। गोल्ड स्टैडर्ड कहलाता है।
कोर सेक्टर- औद्योगिक विकास हेतु कुछ आधारभूत उद्योगों की जरूरत होती है,जैसे सीमेंट,लोहा,इस्पात आदि। इन उद्योगों को कोर सेक्टर कहा जाता है।
एग्रोनामिक्स- यह किसी श्रमिक की कार्यक्षमता व उनके द्वारा किए जाने वाले वास्तविक कार्यों के मध्य संबधों का अध्ययन एग्रोनामिक्स कहलाती है। इसके अध्ययन का उद्देश्य कार्य क्षमता में वृद्वि होती है।

उत्पाद संघ(कार्टेल)- किसी उत्पाद के उत्पादकर्ताओं के संघ को उत्पाद संघ या कार्टेल कहते हैं।
मोनोपॉली- किसी वस्तु के उत्पादन व व्यापार पर एक व्यक्ति, संस्था या समूह के एकाधिकार को मोनोपॉली कहते हैं।

म्यचुअल फंड- म्यूचुअल फंड के अंर्तगत जन साधारण के निवेश योग्य धन को उनकी मर्जी पर बेहतर अवसरों वाली जगहों पर प्रयोग किया जाता है।
सावधि ऋण- वे ऋण, जिसके भुगतान के लिए अवधि के अनुसार शर्तें निर्धारित होती हैं। सावधि ऋण है। यह सामान्यतय: कृषि व उद्योगों की दीर्घकालीन आवश्यकताओं के लिए दिए जाते हैं।

मर्चेंट बैकिंग- इसके अंर्तगत औद्योगिक व वाणिज्यक संस्थानों को विशिष्ट प्रकार की सेवाएं उपलब्ध कराई जाते हैं। मर्चेंट बैकिंग कहलाती है।
व्यक्तिगत प्रतिभूति- बैंकों द्वारा छोटे  ऋणों के लिए ऋण लेने वाले व्यक्ति को अथवा किसी तीसरे व्यक्ति की व्यक्तिगत प्रतिभूति या गांरटी को  ही स्वीकार किया जाता है।
नकद आरक्षी अनुपात- सभी बैंकों को कुल जमा का का 3 सें 15 प्रतिशत आरबीआई के पास नकद जमा रखना पड़ता है। जिसे सीआरआर कहते हैं।

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डिबेंचर (Debenture)
यह एक ऋण का एक साधन है जिसके माध्यम से सरकार या कंपनियां धन जुटाती हैं। यह इक्विटी शेयरों से भिन्न होता है।डीबेंचर खरीदने वाला वास्तव में कर्जदाता होता है। डिबेंचर जारी करने वाली कंपनी या संस्थान गिरवी के तौर पर कुछ नहीं रखती, खरीदार उनकी साख और प्रतिष्ठा को देखते हुए डिबेंचर खरीदते हैं। डीबेंचर जारी करने वाली कंपनी या संस्थान कर्जदाताओं (डिबेंचर खरीदने वालों को) निश्चित ब्याज देते हैं।
कंपनियां शेयरधारकों को भले ही लाभांश नहीं दे लेकिन उसे कर्जदाताओं (डिबेंचरधारकों) को ब्याज देना ही होता है। सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला ट्रेजरी बॉन्ड या ट्रेजरी बिल आदि भी जोखिम रहित डिबेंचर ही होते हैं क्योंकि सरकार इस प्रकार के कर्ज चुकाने के लिए कर बढ़ा सकती है या अधिक नोटों का मुद्रण कर सकती है।
ऑफशोर फंड (Offshore Fund)
जिस फंड के अंतर्गत म्युचुअल फंड कंपनियां विदेश से धन जुटा कर देश के भीतर विनियोजित करती हैं उसे ऑफशोर फंड कहते हैं।
वेंचर कैपिटल (Venture Capital)
नये व्यवसाय की शुरुआत के लिए जुटाई जाने वाली पूंजी को वेंचर कैपिटल या साहस पूंजी या दायित्व पूंजी कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो निवेशकों द्वारा शुरु हो रही छोटी कंपनियों, भविष्य में जिनके विकास की प्रबल संभावना होती है, को उपलब्ध कराई जाने वाली पूंजी को वेंचर कैपिटल कहते हैं। कंपनियां ऐसी पूंजी जुटाने के लिए इक्विटी शेयर जारी करती हैं।
फॉरवर्ड सौदा (Forward Contract)
नकदी बाजार (शेयरों के मामले में) या हाजिर बाजार (कमोडिटी के मामले में) में किया जाने वाला सौदा जिसका निपटारा भविष्य की एक निश्चित तारीख को सुपुर्दगी के साथ निपटाया जाता है।
डेरिवेटिव (Derivative)
वैसी प्रतिभूति जिसका मूल्य उसके अंतर्गत एक या एक से अधिक परिसंपत्तियों के ऊपर निर्भर करता है या उनसे प्राप्त किया जाता है। डेरिवेटिव दो या दो से अधिक पक्षों के बीच किया जाने वाला करार है। इसका मूल्य निर्धारण उन परिसंपत्तियों के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर ऐसी परिसंपत्तियों में स्टॉक, बॉन्ड, जिन्स, मुद्राएं, ब्याज-दर और बाजार सूचकांक शामिल होते हैं।
डेरिवेटिव का इस्तेमाल साधारणत: जोखिमों की हेजिंग के लिए किया जाता है लेकिन इसका प्रयोग सट्टेबाजी के उद्देश्य से भी किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर एक यूरोपियन निवेशक अमेरिकन कंपनी के शेयरों की खरीदारी अमेरिकन एक्सचेंज से (डॉलर का इस्तेमाल करते हुए) करता है।
शेयर अपने पास रखते हुए उसे विनिमय दर का जोखिम बना रहता है। इस जोखिम की हेजिंग के लिए वह निवेशक विशेष विनिमय दर के मुताबिक डॉलर को यूरो में परिवर्तित करना चाहेगा। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह मुद्रा की वायदा खरीद सकता है ताकि जब कभी वह अपना शेयर बेचे और मुद्रा को यूरो में परिवर्तित करे तो उसे विनिमय दर संबंधी हानि नहीं हो।
ओपेन एन्डेड फण्ड (Open Ended Fund )
सतत खुली योजनाएंम्युचुअल फंडों की वैसी योजनाएं जिनकी कोई लॉक इन अवधि (वह पूर्व-निर्धारित अवधि जिससे पहले निवेश किए गए पैसों की निकासी की अनुमति नहीं होती है) नहीं होती है। इनके यूनिटों की खरीद-बिक्री तत्कालीन शुध्द परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) पर कभी भी की जा सकती है।
प्रतिभूतियां (Securities)
प्रतिभूतियां लिखित प्रमाणपत्र होती हैं जो ऋण लेने के बदले दी जाती है। इनमें जारी करने के शर्र्तों एवं मूल्यों का उल्लेख होता है तथा इनका क्रय-विक्रय भी किया जाता है। सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला बॉन्ड, तरजीही शेयर, ऋण पत्र आदि प्रतिभूतियों की श्रेणी में आते हैं। प्रतिभूति शब्द का इस्तेमाल व्यापक तौर पर किया जाता है।
शेयर विभाजन (Stock Split)
कोई कंपनी अपने महंगे शेयर को छोटे निवेशकों के लिए वहनीय बनाने और उसे आकर्षक बनाने के लिए शेयरों का विभाजन करती है। अगर कोई कंपनी अपने शेयरों का विभाजन 2:1 में करती है तो उसका मतलब होता है कि शेयरों की संख्या दोगुनी कर दी गई है और उसका मूल्य आधा कर दिया गया है।
मुद्रा का विनिमय मूल्य ( Exchange Value of Money )
जब देश की प्रचलित मुद्रा का मूल्य किसी विदेशी मुद्रा के साथ निर्धारित किया जाता है ताकि मुद्रा की अदला-बदली की जा सके तो इस मूल्य को मुद्रा का विनिमय मूल्य कहा जाता है। वह मूल्य दोनों देशों की मुद्राओं की आंतरिक क्रय शक्ति पर निर्भर करता है।
मुद्रास्फीति ( Money Inflation )
मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा का आंतरिक मूल्य गिरता है और वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं। यानी मुद्रा तथा साख की पूर्ति और उसका प्रसार अधिक हो जाता है। इसे मुद्रा प्रसार या मुद्रा का फैलाव भी कहा जाता है।
मुदा अवमूल्यन ( Money Devaluation )
यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता है। इस क्रिया से मुद्रा का केवल बाह्य मूल्य कम होता है। जब देशी मुद्रा की विनिमय दर विदेशी मुद्रा के अनुपात में अपेक्षाकृत कम कर दी जाती है, तो इस स्थिति को मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है।
रेंगती हुई मुद्रास्फीति ( Creeping Inflation )
मुद्रास्फीति का यह नर्म रूप है। यदि अर्थव्यवस्था में मूल्यों में अत्यंत धीमी गति से वृद्धि होती है तो इसे रेंगती हुई स्फीति कहते हैं। अर्थशास्त्री इस श्रेणी में एक फीसदी से तीन फीसदी तक सालाना की वृद्धि को रखते हैं। यह स्फीति अर्थव्यवस्था को जड़ता से बचाती है।
रिकॉर्ड तारीख ( Record List )
बोनस शेयर, राइट शेयर या लाभांश आदि घोषित करने के लिए कंपनी एक ऐसी तारीख की घोषणा करती है जिस तारीख से रजिस्टर बंद हो जाएंगे। इस घोषित तारीख तक कंपनी के रजिस्टर में अंकित प्रतिभूति धारक ही वास्तव में धारक माने जाते हैं। इस तारीख को ही रेकॉर्ड तारीख माना जाता है।
रिफंड ऑर्डर ( Refun Order )
यदि किसी शेयर आवेदन पत्र पर शेयर आवंटन की कार्यवाही नहीं होती तो कंपनी को आवेदन पत्र के साथ संपूर्ण रकम वापस करनी होती है। रकम वापसी के लिए कंपनी जो प्रपत्र भेजती है उसे रिफंड ऑर्डर कहा जाता है। रिफंड ऑर्डर चेक, ड्राफ्ट या बैंकर चेक के रूप में होता है तथा जारीकर्ता बैंक की स्थानीय शाखा में सामान्यत: सममूल्य पर भुनाए जाते हैं।
लाभांश ( Dividend )
विभाजन योग्य लाभों का वह हिस्सा जो शेयरधारकों के बीच वितरित किया जाता है, लाभांश कहा जाता है। यह करयुक्त और करमुक्त दोनों हो सकता है। यह शेयरधारकों की आय है।
लाभांश दर ( Dividend Rate )
कंपनी के एक शेयर पर दी जाने वाली लाभांश की राशि को यदि शेयर के अंकित मूल्य के साथ व्यक्त किया जाए तो इसे लाभांश दर कहा जाता है। इसे अमूमन फीसदी में व्यक्त किया जाता है।
लाभांश प्रतिभूतियां ( Dividend Securities )
जिन प्रतिभूतियों पर प्रतिफल के रूप में निवेशक को लाभांश मिलता है, उन्हें लाभांश वाली प्रतिभूतियां कहा जाता है। जैसे समता शेयर, पूर्वाधिकारी शेयर।
शून्य ब्याज ऋणपत्र ( Zero Rated Deventure )
इस श्रेणी के डिबेंचरों या बॉन्डों पर सीधे ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि इन्हें जारी करते वक्त कटौती मूल्य पर बेचा जाता है और परिपक्व होने पर पूर्ण मूल्य पर शोधित किया जाता है। जारी करने के लिए निर्धारित कटौती मूल्य के अंतर को ही ब्याज मान लिया जाता है।

 बजट शब्दावली

  • बजट लेखा-जोखा : वित्त वर्ष के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न करों से प्राप्त राजस्व और खर्च के आकलन को बजट लेखा-जोखा कहा जाता है।
  • संशोधित लेखा-जोखा : बजट में किए गए आकलनों और मौजूदा आर्थिक परिस्थिति के मद्देनजर इनके वास्तविक आंकड़ों के बीच का अंतर संशोधित लेखा-जोखा कहलाता है। इसका जिक्र आने वाले बजट में किया जाता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): एक वर्ष के दौरान निर्मित सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें कृषि, उद्योग और सेवा – तीन क्षेत्र शामिल होते हैं।
  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी): एक वर्ष के दौरान तैयार सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य तथा स्थानीय नागरिकों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश के जोड़ को, विदेशी नागिरकों द्वारा स्थानीय बाजार से अर्जित लाभ में घटाने से प्राप्त रकम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
  • वित्त विधेयक : नए कर लगाने, कर प्रस्तावों में परिवर्तन या मौजूदा कर ढांचे को जारी रखने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक को वित्त विधेयक कहते हैं।
  • विनियोग विधेयक : सरकार द्वारा संचित निधि से रकम निकासी को मंजूरी दिलाने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक विनियोग विधेयक कहलाता है।
  • वित्तीय घाटा : सरकार को प्राप्त कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर वित्तीय घाटा कहलाता है।
  • राजस्व प्राप्ति : सरकार द्वारा वसूले गए सभी प्रकार के कर और शुल्क, निवेशों पर प्राप्त ब्याज और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को राजस्व प्राप्ति कहा जाता है।
  • राजस्व व्यय : विभिन्न सरकारी विभागों और सेवाओं पर खर्च, ऋण पर ब्याज की अदायगी और सब्सिडियों पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय कहते हैं।
  • विनिवेश : सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।
  • राष्ट्रीय ऋण : केंद्र सरकार के राजकोष में शामिल कुल ऋण को राष्ट्रीय ऋण कहते हैं। वित्तीय बजट घाटों को पूरा करने के लिए सरकार यह ऋण लेती है।
  • संचित निधि (कोष) : सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि में जमा होते हैं।
  • आकस्मिक निधि (कोष) : इस कोष का निर्माण इसलिए किया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर आकस्मिक खर्चों के लिए संसद की स्वीकृति के बिना भी राशि निकाली जा सके।
  • पूंजीगत व्यय : सरकार द्वारा अधिग्रहीत विभिन्न संपत्तियों पर हुए खर्च को पूंजीगत व्यय की श्रेणी में रखा जाता है।
  • पूंजीगत प्राप्ति : इसमें सरकार द्वारा बाजार से लिए गए ऋण, भारतीय रिजर्व बैंक से ली गई उधारी और विनिवेश के जरिये प्राप्त आमदनी को शामिल किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है। मसलन, इन्कम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स।
  • अप्रत्यक्ष कर (इन्डायरेक्ट टैक्स) : वह टैक्स, जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है। देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं।
  • नवीन पेंशन योजना (एनपीएस) : सरकार ने इसमें कई बदलाव किए हैं। नई भर्तियों को अब सरकारी पेंशन नहीं मिलेगी। कमर्चारियों को अपनी तन्ख्वाह में से ही अपनी पेंशन की बचत करनी होगी। यह बचत करना अनिवार्य नहीं है, न ही इसमें कोई अपर लिमिट है, लेकिन अगर आप इसे करते हैं, तो कम से कम 500 रुपये आपको इसमें हर महीने डालने होंगे। खास बात यह है कि निजी क्षेत्र में काम कर रहे लोग भी इसे अपना सकते हैं। फायदा यह है कि एनपीएस में जमा रकम की मियाद पूरी हो जाने पर जब कोई पैसा निकालेगा, तो उस पर उसी साल के कानून के मुताबिक टैक्स लगेगा।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई): किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं।
  • आयकर (इन्कम टैक्स) : वह टैक्स, जो सरकार आपकी आय पर आय में से लेती है। आपकी आमदनी के पहले डेढ़ लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगता। डेढ़ लाख के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है। जिनकी तनख्वाह दस लाख रुपये सालाना से ज़्यादा है, वो टैक्स के ऊपर भी टैक्स देते हैं, जिसे सरचार्ज कहा जाता है। इन्कम टैक्स में निजी कमाई और कंपनियों की आमदनी दोनों शामिल हैं।
  • मानक कटौती (स्टैण्डर्ड डिडक्शन) : आप अपनी आमदनी में से इंश्योरेंस, सीपीएफ, जीपीएफ, पीपीएफ, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी), टैक्स बचाने वाले म्यूचुअल फंड, पांच साल से ज़्यादा की एफ़डी, होम लोन के प्रिंसिपल (मूलधन) जैसे निवेशों में लगा सकते हैं, और ऐसे ही निवेशों को जोड़कर एक लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट दी जाती है। इस एक लाख रुपये को आपकी कुल आय में से घटा दिया जाता है और उसके बाद इन्कम टैक्स का हिसाब लगाया जाता है।
  • उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) : यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है। कंपनियों को फैक्ट्री में से सामान निकालने से पहले इसे भरना ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं कि एक ही तरह की चीज़ों पर बराबर एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाए। यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है।
  • औद्योगिक कर : औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाए जाने वाले कर। यह उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाए गए व्यक्तिगत कर से अलग होता है।
  • सेवा कर (सर्विस टैक्स) : वह कर, जो आप सेवाओं पर देते हैं। जम्मू−कश्मीर के अलावा बाकी सभी राज्यों में सर्विस प्रोवाइडर को सर्विस टैक्स देना होता है। पहले यह 12 फीसदी था, लेकिन आर्थिक मंदी के चलते अब इसे घटाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। सर्विस टैक्स फोन, रेस्तरां में खाना, ब्यूटी पार्लर या जिम जाने जैसी सेवाओं पर वसूला जाता है।
  • वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) : वैट वह कर है, जो आप किसी सामान की खरीद पर देते हैं। यह कर सेवाओं पर नहीं होता। जिन राज्यों में वैट लागू है, वहां पर एक्साइज़ ड्यूटी और सर्विस टैक्स अलग से वसूला जाता है। वैट राज्य स्तर पर वसूला जाता है। वैट वसूली की चार दरें हैं – यह शून्य से साढ़े बारह फीसदी तक होती हैं। ज़रुरी सामान – जैसे जीवनरक्षक दवाओं पर कोई वैट नहीं लगता, जबकि तंबाकू, शराब जैसे चीज़ों पर साढ़े बारह फीसदी की दर से वैट वसूला जाता है।
  • विक्री कर (सेल्स टैक्स) : सरकार किसी भी सामान की खरीद-फरोख्त पर कर वसूलती है। देश के ज्यादातर राज्यों मे अब सेल्स टैस की जगह वैट ने ले ली है, लेकिन सेल्स टैक्स सेवाओं पर भी वसूला जाता है। एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान के जाने पर चार फीसदी केन्द्रीय सेल्स टैक्स (सीएसटी) लगाया जाता है, जिसे अब धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है।
  • फ्रिंज बेनेफिट टैक्स (एफबीटी) : कंपनियां अपने कमर्चारियों को फोन, कार या एलटीए, एलटीसी जैसी यात्राओं के लिए सुविधाएं देती हैं। इनके बदले उन पर जो टैक्स लगाया जाता है, उसे एफबीटी कहते हैं। लेकिन अधिकतर उद्योग संगठन अथवा कंपनियां एफबीटी का बोझ कमर्चारियों पर ही डाल देती हैं और इसे उनकी तनख्वाह में से काटा जाता है। कंपनियां एफबीटी को टैक्स की दोहरी मार मानती हैं, क्योंकि वे आय पर भी टैक्स देती हैं और सहूलियतों पर भी।

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